Tuesday, August 6, 2013

क्या ज़माना आ गया है


मेट्रो में सामने  की सीट पर एक लड़का और एक लड़की बैठे थे. और दोनों ही जोर जोर  हंस रहे थे. मेरी बगल वाली सीट पे एक 60-65 साल के बुजुर्गवार बैठे थै. बड़ी देर से दोनों को देख रहे थे. जब  रहा नहीं गया तो मेरी और मुखातिब होकर बोले.  देखिये ना, क्या जमाना आ गया है. ना शर्म। और न हया. एक हमारा जमाना था. औरत बिना परदे के घर के बाहर नहीं निकलती थी. और अब देखिये। हाथ में हाथ पकड़ कर हंसा जा रहा है. इतना भी नहीं सोचते की कौन क्या सोचेगा. 

मैंने सर हिलाकर अपनी सहमति व्यक्त की. लड़का और लड़की पहले की ही तरह जोर जोर से हंस रहे थे. मानो दोनों को अमरता का वरदान मिल गया हो. भगवान् शिव से. 
 
बुजुर्गवार कभी उन लड़के लड़की को देखते, और कभी मुझे. ना जाने कितनी चिंता की लकीरे उनके चेहरे पे खिंच आयीं थि. ऐसा लगा मानो उनके सामने अनके जमाने की मय्यत जा रही हो.

मेरा स्टेशन आ गया था. सो में ट्रेन से उतरा और अपने गंतव्य की और निकल पडा. 

Saturday, August 3, 2013

तीन टाइप के लोग


जी हाँ, लोग तीन टाइप के होते हैं. एक वो जो बिलकुल फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं. ऐसे लोग गालियाँ भी दें तो लगता है आकाश से पुष्प वर्षा हो रही हो. ये लोग अपने आपको सबसे ऊपर समझते हैं. इन लोगों की एक ख़ास विशेषता ये भी होती है की इन्हें इंडिया (यानी के भारत) बिलकुल देहाती देश लगता है. ये लोग रहते और खाते तो इंडिया का और इंडिया मैं, लेकिन गुण UK और US का गाते है.

दुसरे टाइप के लोग वो हैं जो इंग्लिश तो बोलना चाहते हैं लेकिन हिंदी से भी touch नहीं छोड़ना चाहते। इन लोगों अपने किस्म की एक langauge बना ली है. Hinglish. Metro में, बसों में, CP में, और offices में ऐसे भतेरे Hinglish भाषी लोग आपको देखने और सुनने को मिल जायेंगे।

अब नंबर आता है तीसरे type की लोगों का. ये लोग हमारे देश में सबसे ज्यादा तादाद में हैं. गावों में, कस्बों में, और सेंकडों शहरों में ये लोग पाए जाते है. ये हैं हिंदी भाषी। 

दुःख का विषय ये है की हमारे इस देश में कई लोग मजबूरी के हिंदी भाषी हैं. ये हिंदी इसलिए बोलते हैं क्यूंकि इन्ही अंग्रेजी या हंग्रेजी नहीं आती. ये लोग हर दिन उस दवा की तलाश में रहते हैं जिसे पीकर इन्हें झटके से फरार्तेदार अंग्रेजी बोलना आ जाये. 

अभी महिना दो महिना पहले अपने एक मित्र के यहाँ गया था. बैठा ही था की उसने अपने 2 साल की बच्ची को बुलाया और मुझे hello करने को कहा. फिर उसे अंग्रेजी की दो चार कवितायें सुनाने के लिए कहा गया. उस बच्ची ने वो भी सुना दॆन. फिर वो भागकर अन्दर वाले कमरे में चली गयी. मित्र ने मुश्कुराकर मेरी तरफ देखा और कहा, "देख रहा है यार, दो तीन साल में पूरी अंग्रेज बन जाएगी।" मैंने कुछ नहीं कहा. 

आते हुए सोच रहा था, वो उस बच्ची को  हिंदुस्तानी क्यूं नहीं बना चाहता। 
तो जैसा की में कह रहा था की तीन तरह के लोग होते हैं. एक वो जो फरारेदार अंग्रेजी में बात करते हैन. दुसरे हो जो हिंगलिश के गुफ्तगू करते हैं. और तीसरे वो लोग जो हिंदी भाषा का मजबूरन प्रयोग करते है. 



दीपू के पापा

पड़ोस में ही रहतीं हैं दीपू की मम्मी, दीपू, और दीपू के पापा। दीपू अभी चार साल का ही होगा। दीपू के पापा export की एक company में धागा काटने का काम करते हैं। 6 हजार मिल जाते होंगे महिना। 

हर रोज आते हुए देखता हूँ की दीपू के पापा बिरजू हलवाई से पाव भर जलेबी ले आते हैं, घर पे। दीपू की मम्मी को जलेबी बड़ी पसंद हैं। दीपू के ही पापा ने एक बार बात ही बात में बताया था

कल शाम घर पहुंचा ही था तो देखा पड़ोस से रोने गाने की आवाज आ रही है। वहां गया तो पता चला दीपू के घर में ही हल्ला हो रहा है। दरवाजे तक पहुंचा तो देखता हूँ पास पड़ोस के  लोग जमवाड़ा बनाकर खड़े हैं। कुछ औरतें हैं जो दीपू की मम्मी को पकडे हुए है। और दीपू की मम्मी हैं जो संभले नहीं संभल रही हैं। दीपू पास में बैठा जलेबी चबा रहा है। और दीपू के पापा

दीपू के पापा पड़े हुए हैं एक तरफ, फर्श पर। मृत। dead। 

मैं और देर नहीं खड़ा हो पाया, और अपने कमरे की तरफ आ गया। बाद में पता चला की दीपू के पापा आज  थोडा जल्द ही पहुँच गए थे।  सीने में दर्द की  शिकायत कर रहे थे। बगल वाले डॉ पांडे को दिखाया तो उन्होंने दर्द कम होने की कोई गोली दे दी। 

दर्द तो कम नहीं हुआ, हाँ दीपू के पापा का शरीर जरूर शांत हो गया




Tuesday, July 23, 2013

ये नहीं पीयेगी


ऑफिस से आते हुए कुछ सोचा कि थोडा जूस पिया जाए। सो  जूस की एक दूकान पे खड़ा हो गया/ एक गिलास अनानास के जूस का आर्डर दिया, और चुपचाप आने जाने वाले लोगों को देखने में लग गया

तभी नजर बगल में खड़े एक परिवार पे गयी माँ, बाप, और दो बच्चे एक लड़का और एक लड़की अंदाजन दोनों 12-13 साल के रहे होंगे 

तभी जूस वाले ने एक गिलास मुस्संबी का गिलास उनकी तरफ बढाया।  माँ ने ग्लास पकड़ा और लड़के को दे दिया। लड़का  तस्सली के साथ जूस पीने लग गया

बाकी के तीन उसे जूस पीता देख रहे थे; मुझे भी आभास हो चला था, की चार लोगों का ये परिवार केवल एक गिलास जूस ही अफ़्फोर्ड कर सकता है

सोच ही रहा था की नजर लड़की पे जा टिकी। या शायद उसके सूखते होंठों और सूखते सपनों पे लड़के ने एक बार कोशिश जरूर की, की गिलास में बचा थोडा जूस अपनी बहन को दे दे , लेकिन माँ ने उसे तुरंत रोक दिया। तपाक से बोल पड़ी, "तू पीले बाबू … ये नहीं पीयेगी।"