जी हाँ, लोग तीन टाइप के होते हैं. एक वो जो बिलकुल फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं. ऐसे लोग गालियाँ भी दें तो लगता है आकाश से पुष्प वर्षा हो रही हो. ये लोग अपने आपको सबसे ऊपर समझते हैं. इन लोगों की एक ख़ास विशेषता ये भी होती है की इन्हें इंडिया (यानी के भारत) बिलकुल देहाती देश लगता है. ये लोग रहते और खाते तो इंडिया का और इंडिया मैं, लेकिन गुण UK और US का गाते है.
दुसरे टाइप के लोग वो हैं जो इंग्लिश तो बोलना चाहते हैं लेकिन हिंदी से भी touch नहीं छोड़ना चाहते। इन लोगों अपने किस्म की एक langauge बना ली है. Hinglish. Metro में, बसों में, CP में, और offices में ऐसे भतेरे Hinglish भाषी लोग आपको देखने और सुनने को मिल जायेंगे।
अब नंबर आता है तीसरे type की लोगों का. ये लोग हमारे देश में सबसे ज्यादा तादाद में हैं. गावों में, कस्बों में, और सेंकडों शहरों में ये लोग पाए जाते है. ये हैं हिंदी भाषी।
दुःख का विषय ये है की हमारे इस देश में कई लोग मजबूरी के हिंदी भाषी हैं. ये हिंदी इसलिए बोलते हैं क्यूंकि इन्ही अंग्रेजी या हंग्रेजी नहीं आती. ये लोग हर दिन उस दवा की तलाश में रहते हैं जिसे पीकर इन्हें झटके से फरार्तेदार अंग्रेजी बोलना आ जाये.
अभी महिना दो महिना पहले अपने एक मित्र के यहाँ गया था. बैठा ही था की उसने अपने 2 साल की बच्ची को बुलाया और मुझे hello करने को कहा. फिर उसे अंग्रेजी की दो चार कवितायें सुनाने के लिए कहा गया. उस बच्ची ने वो भी सुना दॆन. फिर वो भागकर अन्दर वाले कमरे में चली गयी. मित्र ने मुश्कुराकर मेरी तरफ देखा और कहा, "देख रहा है यार, दो तीन साल में पूरी अंग्रेज बन जाएगी।" मैंने कुछ नहीं कहा.
आते हुए सोच रहा था, वो उस बच्ची को हिंदुस्तानी क्यूं नहीं बना चाहता।
तो जैसा की में कह रहा था की तीन तरह के लोग होते हैं. एक वो जो फरारेदार अंग्रेजी में बात करते हैन. दुसरे हो जो हिंगलिश के गुफ्तगू करते हैं. और तीसरे वो लोग जो हिंदी भाषा का मजबूरन प्रयोग करते है.